Monday, April 19, 2010

TUM MERE MAN KE MEET NAHIN

कविता  लिखने  की  इच्छा  इस  कुंठित  मन  में  जागी  है
लगता  है  मन  वैरागी  है
क्या  लिखूं  कहूँ  किसे  सूनुं  सुनाओं
सब  चढ़  भँगुर  रस  के  प्यासे  हैं
कब  तक  चला  कहाँ  रुका  कुछ  समझ  में  मेरी  ना  आता  है

कविता  लिखने  की  इच्छा  फिर  भी  मन  में  जागी  है
लगता  है  मन  वैरागी  है ,

वो  चली  गयी  कहते  हुए  तुम , नीरस  और  बेरंगी  हो
नहीं  करती  प्यार  मैं  अब  तुमको , तुम  मेरे  मन  के  मीत  नहीं ,

वो  चली  गयी  कहते  हुए  तुम , मुझको  समझ  ना  पाए  कभी
नहीं  करती  प्यार  मैं  अब  तुमको , तुम  एक  आँख  अब  भाते  नहीं ,

वो  चली  गयी  कहते  हुए  तुम , से  जो  वादे  नाते  मेरे  थे ,
मैं  सब  कुछ  अब  झुट्लाती  हूँ , वोह  प्यार  नहीं  कुछ  और ही था 
तुम  मेरे  मन  के  मीत  नहीं ,

वो  चली  गयी  कहते  हुए  जो  भी  दिन  बीते  थे  साथ  में  अपने  वोह  सब  अनजाने  सपने  हैं
वो  मेरी  उम्र  की  भूल  हे  थी , तुम  मेरे  मन  के  मीत  नहीं ,

वो  चली  गयी  कहते  हुए , मैंने  जब  तुमको  प्यार  किया, अपना  सब  कुछ  वार  दिया , तुमने  बदले  में  टकरार  किया, मेरी  आँखों  में  अंश्रु  बहार  दिया ,

वो  चली  गयी  कहते  हुए  जब  मैं  तुमसे  मिलती  थी , कंधे  पर  सर  रखती  थी , तुम  शरमाते  हिचकिचाते  थे , नाराज़  होकर  पलट  जाते  थे , तुम  मेरे  मन  के  मीत  नहीं ,

वो  चली  गयी  कहते  हुए , जब  जब  मैं  तदपि  रोई , घबरायी  चिल्लाई , परेशान चत्पतायी , तुम  कभी  मेरे  पास  ना  थे , तुम  हर  दम  मुझसे  दूर  हे  थे , तुम  मेरे  मन  के  मीत  नहीं

मैं  ये  सब  कुछ  सुनता  रहा , सिसक  सिसक  कर  रोता  रहा ,
फिर  भी  मन  ये  मानता  नहीं  की  मैं  उसके  मन  का  मीत  नहीं ,
दिल  इस  बात  को  जानता  नहीं  की  मैं  उसके  मन  का  मीत  नहीं ,

जब  पहली  बार  मिले  थे  हम , ये  बातें  जग  जाहिर  थीं ,
दोनों  के  दिलों  में  उठी  वोह  अनजानी  सी  कुछ  धुनें  थीं ,
इस चंचल  मन  की  लहरों  ने  पाया  एक  किनारा  था , अँधेरी  ह्रदय  की  गलियों  में  हूआ  एक  उजियारा  था ,
जब भी दोनों साथ में  होते , हर  दम  हँसते  खिल  खिलते  थे ,
लोगों  के  मन , दोनों  को  देखर  कर  फूलों  से  खिल  जाते  थे ,

प्यार  के  रंग  में  रंगे  थे  दोनों , अब  कहती  बेरंगी  हूँ ,
भूल  गयी  वोह   फूलों  सी  गलियां , जिनमें  बहता  समय  थम  सा  जाता  था ,
भूल  गयी  वोह  बाँहों  के  झूले , जिनमें  दूब  कर  मन  बह  सा  गया  था .................... to be continued.....

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