Monday, April 19, 2010

प्यार  करने  का फैसला  भी  मेरा  था , हाथ  पकड़ने  का  वादा  भी मेरा   था  ,
साथ   चलने   का   इरादा   भी   मेरा   था  , तुम्हें   पाने   की   चाहत   भी   मेरी   थी  ,
साथ   मुस्कुराने   का   मन   भी   मेरा   था  तुम्हें  रूठने  पर  मानाने  का  काम  भी  मेरा  था ,
रास्ते भी  मेरे  थे , मंजिलें  भी  मेरी  थीं ,
तुम्हें  छूकर  हर्षाता  भी  मैं  था , तुम्हारे  लिए  दीवाना  भी  मैं  था ,
तुम्हारी  अदाओं  पर  मरजाता  भी  मैं  था , तुम्हारी आँखों  में  खोजता  भी  मैं  था ,
तुम्हारे  होठों  को  छूता  भी  मैं  था , तुम्हें  दर्द  में  डुबोता  भी  मैं  था ,
उन्ज़ुल्फों  से  खेलता  भी  मैं  था , उन  हस्तों  को  छेड़ता  भी  मैं  था ,
उस माथे  को  चूमता  भी  मैं  था , मद  मस्त  हाथी  सा  झूमता  भी  मैं  था ,
तुम्हारी  आँखों  में  आंसू  देजाता  भी  मैं  था , उन  आंसुओं  को  पोछता भी  मैं  था ,
तुम्हारे  गुस्से  की  वजह  भी  मैं  था , तुम्हारी  खिलखिलाती  हंसी  का  कारण  भी  मैं  था ,
वोह  सारे  सपने  दिखता  भी  मैं  था , और  उन  आधे  आधुरे  सपनों  के  सच न होने  पर  मुरझाता  भी  मैं  था ,
तुम  पर  ज़ुल्म  भी  किये  थे  मैंने , पर  तुमसे  प्यार  भी  किया  था  मैंने ,
तुम  को जानता  भी  मैं  था , और  कभी  कभी  तुमसे  अनजाना  सा  भी  मैं  था ,
एक  ऐसी  प्रेम  कहानी  थी  मेरी , जिसका  नायक  भी  मैं  था , और  खलनायक  भी  मैं  था .

2 comments:

Anonymous said...

excellent piece.....
extreme emotions..........

Nishith Srivastava said...

excellent piece....
extreme emotions.....